“माहे जमादि उल ऊला मुबारक”
जमादि का माना है “बर्फ का जमना”
जब इस महीने का नाम रखा गया तब सख्त सरदी ठण्ड थी और कुछ मुल्को में बर्फ पड़ रही थी, तालाब वगैरह जमे हुए थे, इस लिए इसे माहे जमादीउल-अव्वल कहा जाता है,
माहे जमादि उल ऊला का चाँद देख कर सूरह इखलास पढ़ें:
ﺑِﺴْﻢِ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﺍﻟﺮَّﺣْﻤَٰﻦِ ﺍﻟﺮَّﺣِﻴﻢِ
ﻗُﻞْ ﻫُﻮَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﺃَﺣَﺪٌ
ﺍﻟﻠَّﻪُ ﺍﻟﺼَّﻤَﺪُ
ﻟَﻢْ ﻳَﻠِﺪْ ﻭَﻟَﻢْ ﻳُﻮﻟَﺪْ
ﻭَﻟَﻢْ ﻳَﻜُﻦْ ﻟَﻪُ ﻛُﻔُﻮًﺍ ﺃَﺣَﺪٌ
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम,
कुल हुवल्लाहु अहद,
अल्लाहुस समद,
लम यालिद व लम यूलद,
व लम याक़ुल्ला लहू कुफुव्वान अहद,
फिर यह मसनून दुआ पढ़ें :
ﺍﻟﻠَّﻬُﻢَّ ﺃَﻫِﻠَّﻪُ ﻋﻠَﻴْﻨَﺎ ﺑِﺎﻷَﻣْﻦِ ﻭﺍﻹِﻳﻤَﺎﻥِ ﻭَﺍﻟﺴَّﻼﻣَﺔِ ﻭﺍﻹِﺳْﻼﻡِ ، ﺭَﺑّﻲ ﻭﺭَﺑُّﻚَ ﺍﻟﻠَّﻪ ، ﻫﻼﻝ ﺭﺷﺪ ﻭﺧﻴﺮ
Allāhumma ahillahu alayna bil amni wal eimaani was salaamati wal islaami Rabbee wa Rabbuk-Allāh hilaalu rushdin wa khayrin.
अल्लाहुम्मा अहिल्लहु अलइना बिल अमनी वल ईमानि वस्सलामति वल इस्लामि रब्बी व रब्बुकल्लाह हिलालु रुश्दिन व ख़ैरिन,
तर्जुमा :- ए अल्लाह इस चाँद (महीने) को हम पर अमन और ईमान और सलामती और इस्लाम के साथ तेरा रब्ब और मेरा रब्ब अल्लाह है, यह चाँद हिदायत और खैर वाला हो,
माहे जमादि उल ऊला की इबादत :- माहे जमादीउल-अव्वल की पहली रात को नमाज़े मग़रिब के बाद 8, रकअत नफ़्ल नमाज़ 2-2- कर के पढ़ें, हर रकअत में सूरह फातिहा (अल्हम्दू शरीफ) के बाद 11, मर्तबा सूरह इखलास (कुल हुवल्लाहु अहद) पढ़ें, नमाज़ के बाद दुआ करें,
इनशा अल्लाह तआला बेशुमार सवाब और फ़ज़ल अता फरमाएगा,
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“माहे जमादि उल ऊला के ख़ास दिन”
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अल्लाह तआला इस माहे मुबारक में उस के हबीब सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़े में और तमाम औलिया अल्लाह के वसीले से
सब को मुकम्मल इश्क़े रसूल अता फरमाए और सब को हिदायत अता फरमाए और सब के ईमान की हिफाज़त फरमाए और सही तरीके से ज़्यादा इबादत करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और हमारे नेक अमल क़ुबूल फरमाए और इन बुज़ुर्गाने दीन को इसाले सवाब करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और इस्लाम का बोलबाला अता फरमाए,और सब को दुनिया व आख़िरत में कामयाबी और इज़्ज़त अता फरमाए और सब की नेक जाइज़ मुरादों को पूरी फरमाए और सब को इल्म में, अमल में और रिज़्क़ में बरकत अता फरमाए आमीन,
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