तीनो रात एक तरह ख्वाब :- हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सला ने जुलहज की आठवीं रात एक ख्वाब देखा जिस में कोई कहने वाला कह रहा है बेशक अल्लाह अज़्ज़ा वजल तुम्हे अपने बेटे को ज़िबह का करने का हुक्म देता है आप सुबह से शाम तक इस बारे में गौर फरमाते रहे के ये ख्वाब अल्लाह अज़्ज़ा वजल की तरफ से है या शैतान की जानिब से! इस लिए आठ ज़ुल्हज का नाम योमूत तरवियाह (यानि सोच विचार का दिन) रखा गया – नवी रात फिर वही ख्वाब देखा और सुबह यकीन कर लिया के ये हुक्म अल्लाह की तरफ से है, इस लिए 9 ज़ुल्हज को योमे अरफ़ा (यानि पहचानने का दिन भी कहा जाता हैं) दसवीं रात फिर वही ख्वाब देखने के बाद आप अलैहिस सलातु वस्सलाम ने सुबह उस ख्वाब पर अमल करना यानि बेटे की क़ुरबानी का पक्का इरादा फरमा लिया जिस की वजह से ज़ुल्हज को यौमुन्नहर यानि ज़बह का दिन कहा जाता हैं |
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बेटे की क़ुरबानी से रोकने की शैतान की नाकाम कोशिशें :- अल्ल्लाह अज़्ज़ा वजल के हुक्म पर अमल करते हुए बेटे की क़ुरबानी करने के लिए हज़रते इब्राहीम अलैहिस सलातु वस्सलाम जब अपने प्यारे बेटे हज़रते इस्माइल अलैहिस सलातुल वस्सलम को जिन की उम्र उस वक्त सात साल (या इस से थोड़ी ज़्यादा थी) ले कर चले शैतान उनकी जान पहचान वाले एक शख्स की सूरत में ज़ाहिर हुआ और पूछने लगा ए इब्राहीम कहाँ का इरादा है? आप ने जवाब दिया एक काम से जा रहा हूँ उस ने पूछा क्या आप इस्माइल को ज़बह करने जा रहे है? हज़रते इब्राहीम अलैहिस सलाम ने फ़रमाया: क्या तुमने किसी बाप को देखा है के वो अपने बेटे को ज़बह करे? शैतान बोला: जी हाँ, आप को देख रहा हूँ के आप इस काम के लिए चले हैं आप समझते है के अल्लाह पाक ने आपको इस बात का हुक्म दिया है हज़रते इब्राहीम अलैहिसलाम ने इरशाद में फ़रमाया: अगर अल्लाह पाक ने मुझे इस बात का हुक्म दिया है तो फिर में इस की फरमाबरदारी करूंगा यहां से मायूस होकर शैतान हज़रते इस्माइल अलैहिस सालतु वस्सालम की अम्मी जान हज़रते हाजराह रदीयल्लाहु अन्हा के पास आया और उन से पूछा इब्राहीम आप के बेटे को लेकर कहाँ गएँ हैं? जवाब दिया वो अपने एक काम से गए हैं हज़रते हाजराह रदियल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया: क्या तुमने किसी बाप को देखा है के वो अपने बेटे को ज़बह करे? शैतान ने कहा वो ये समझते है के अल्लाह अज़्ज़ा वजल ने उन्हें इस बात का हुक्म दिया है ये सुन कर हज़रते हाजराह रदियल्लाहु अन्हा ने इरशाद फ़रमाया: अगर ऐसा है तो उन्होंने अल्लाह पाक की इताअत (यानि फरमाबरदारी) कर के बहुत अच्छा किया इस के बाद शैतान हज़रते इस्माइल अलैहिस सलातुवस्सलाम के पास आया और उन्हें भी इस तरह से बहकाने की कोशिस की लेकिन उन्हों ने भी यही जवाब दिया के अगर मेरे अब्बू जान अल्लाह पाक के हुक्म पर मुझे ज़बह करने के लिए जा रहे है तो बहुत अच्छा कर रहे है |
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शैतान को कंकरियां मारें :- जब शैतान बाप बेटे को बहकाने में नाकाम हुआ और जमरे, के पास आया तो हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने उसे, सात, कंकरिया मारी कंकरियां मारने पर शैतान अपने रास्ते से हट गया यहां से नाकाम होकर शैतान दूसरे जमरे पर गया, फरिश्ते ने दोबारा हज़रते इब्राहिम अलैहिस सलातुवस्सलाम से कहा इसे मारिये आप ने इसे सात कंकरियां मारी तो उस ने रास्ता छोड़ दिया अब शैतान तीसरे जमरे, के पास पंहुचा हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने फरिश्ते के कहने पर एक बार फिर सात कंकरियां मारी तो शैतान ने रास्ता छोड़ दिया शैतान को तीन मक़ामात पर कंकरिया मरने की याद बाकि रखी गयी है और आज भी हाजी उन तीनो जगहों पर कंकरियां मारते है |
बेटा क़ुरबानी के लिए तैयार :- हज़रते इब्राहीम अलैहिसालतु वस्सलाम जब हज़रते इस्माइल अलैहिस सालतु वस्सलाम को लेकर कुहे “सबीर” पर पहुंचे तो उन्हें अल्लाह अज़्ज़ा वजल के हुक्म की खबर दी, जिस का ज़िक्र क़ुरआने करीम में इन अल्फ़ाज़ में है – याबुनैय्या इन्नी आरा फिल मनामि अन्नी अज़बहूका फनज़ुर माज़ा तरा – तर्जुमा कंज़ुलईमान: ए मेरे बेटे मेने ख्वाब देखा में तुझे ज़िबह करता हूँ अब तू देख तेरी क्या राय है? फर्माबरदार बेटे ने ये सुन कर जवाब दिया: तर्जुमाए कंज़ुल ईमान: ए मेर बाप कीजिये आप को जिस बात का हुक्मं होता है, खुदा ने चाहा तो करीब है के आप मुझे साबिर (यानि सब्र करने वाला) पाएंगे |
मुझे रस्सियों से मज़बूत बांध दीजिये :- हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम ने अपने वालिदे मोहतरम से मज़ीद अर्ज़ की: के अब्बू जान ज़ब्ह करने से पहले मुझे रस्सियों से मज़बूत बांध दीजिये ताके में हिल न सकू क्यूंकि मुझे डर है के कहीं मेरे सवाब में कमी न हो जाए और मेरे खून के छीटों से अपने कपड़े बचा कर रखिये ताके उन्हें देख कर मेरी अम्मी जान ग़मगीन न हो छुरी खूब तेज़ कर लीजिये ताके मेरे गले पर अच्छी तरह चल जाये (यानी गला फ़ौरन कट जाये) क्यूँकि मौत बहुत सख्त होती है, आप मुझे ज़ब्ह करने के लिए पेशानी के बल लिटाएं (यानि चेहरा ज़मीन की तरफ हो) ताकि आपकी नज़र मेरे चेहरे पर न पड़े और जब आप मेरी अम्मी जान के पास जाएं तो उन्हें मेरा सलाम पंहुचा दीजिये और अगर आप मुनासिब समझे तो मेरी कमीज़ उन्हें दे दीजिये, इससे उनको तसल्ली होगी और सब्र आ जायेगा हज़रते इब्राहिम अलैहिसालतु वस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया: ए मेरे बेटे तुम अल्लाह ताआला के हुक्म पर अम्ल करने में मेरे कैसे उम्दाह मददगार साबित हो रहे | हो फिर जिस तरह हज़रते इस्माईल अलैहिसालतु वस्सलाम ने कहा था उन को उसी तरह बांध दिया, अपनी छुरी तेज़ की, हज़रते इस्माईल अलैहिसलाम को पेशानी के बल लिटा दिया, और उन के चेहरे से नज़र हटाली और उनके गले पर छूरी चलादी लेकिन छुरी ने अपना काम न किया यानि गला न काटा इस वक्तहज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर वही नाज़िल हुई तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और हम ने इसे निदा फ़रमाई ए इब्राहीम बेशक तूने ख्वाब सच कर दिखाया हम ऐसा ही सिला देते है नेको को, बेशक ये रोशन जांच थी और हम ने एक बड़ा ज़िबहिया उसके फ़िदये में देकर बचा लिया |
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जन्नत का मेंढा :- हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जब इस्माईल अलैहिस्सलाम को ज़बह करने के लिए ज़मीन पर लिटाया तो अल्लाह पाक के हुक्म से हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम बतौरे फ़िदया जन्नत से एक मेंढा (यानि दुंबा) लिए तशरीफ़ लाए और दूर से ऊंची आवाज़ में फ़रमाया: अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, जब हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ये आवाज़ सुनी तो अपना सर आसमान की तरफ उठाया और जान गए अल्लाह अज़्ज़ा वजल की तरफ से आने वाली आज़माइश का वक़्त गुज़र चुका है और बेटे की जगह फ़िदये में मेंढा भेजा गया है लिहाज़ा खुश होकर फ़रमाया: ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर, जब हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम ने ये सुना तो फ़रमाया: अल्लाहु अकबर वलिल्लाहिल हम्द, इस के बाद से इन तीनो पाक हज़रात के इन मुबारक अलफ़ाज़ की अदाएगी की ये सुन्नत क़यामत तक के लिए जारी व सारी होगई
जन्नती मेंढे के गोश्त का क्या हुआ :- हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलामा के फ़िदये में जो मेंढा (यानि दुम्बा ) ज़िबह फ़रमाया था इस के बारे में अक्सर मुफस्सिरीन का कहना ये है की वो मेंढ़ा (यानि दुम्बा) जन्नत से आया था और ये वही मेंढा था जिस को हज़रते आदम अलैहिस्सलातुवस्सलाम के बेटे हज़रते हाबील रहमतुल्लाह अलैह ने कुर्बानी में पेश किया था | हम बचपन से ही ये बात सुनते आ रहे हैं कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम  को अल्लाह त’आला की राह में क़ुरबान करने के लिये ज़िबह करना चाहा तो अल्लाह त’आला के हुक्म से हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम एक दुम्बा ले कर आए और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की जगह वो दुम्बा ज़िबह हुआ।
इस वाक़िये को मुख्तलिफ़ तरीक़ों से अलफाज़ की कमी व बेशी के साथ बयान किया जाता है लेकिन जब हम कई किताबों में इस वाक़िये पर गौर करेंगे तो ज़िबह होने वाले दुम्बे के बारे में कई सवालात ज़हन में आयेंगे, मिसाल के तौर पर कुछ सवालात ज़ेल में बयान किये जाते हैं:
- क्या ज़िबह होने वाला दुम्बा जन्नती था?
- उसका गोश्त कहाँ गया?
- किताबों में लिखा है कि उसका गोश्त इसलिये नहीं पकाया गया क्योंकि जन्नती चीज़ों पर आग असर नहीं करती तो अब सवाल ये पैदा होता है कि हज्जाज बिन यूसुफ के दौर में उस जन्नती दुम्बे की सींग में आग कैसे लगी?
- कई किताबों में जब उसके सींग के जलने की सराहत मौजुद हो तो फिर उसके जन्नती होने पर हर्फ आएगा या नहीं? इस मुख्तसर से मज़मून में हम इसी तरह के कुछ सवालों के जवाबात दलाईल की रौशनी में देने की कोशिश करेंगे।
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हज़रत अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद इस्माईल हुसैन नूरानी लिखते हैं कि जो दुम्बा हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की जगह ज़िबह हुआ था वो कहाँ से आया था? इस बारे में मुख्तलिफ़ अक़्वाल हैं, अकसर मुफस्सिरीन की राय ये है कि वो दुम्बा जन्नत से उतारा गया था जैसा कि तफसीर -ए- खाज़िन, तफसीर -ए- बगवी और दीगर तफासीर में मौजूद है। (خازن، ج4، ص39)
अब रहा ये सवाल कि उस दुम्बे का गोश्त कहाँ गया, या कैसे तक़सीम हुआ? :- तो इस हवाले से अल्लमा सावी मालिकी और सैय्यद सुलेमान जमाल की राय ये है कि वो दुम्बा चूँकि जन्नत से उतारा गया था और जन्नत की चीज़ों पर आग असर नहीं करती इसलिये उसका गोश्त पकाया नहीं गया बल्कि उसे परिंदों और दरिन्दों ने खा लिया। अल्लामा सावी रहीमहुल्लाह लिखते हैं कि उस दुम्बे के अज्ज़ा को परिंदो और दरिन्दों ने खा लिया क्योंकि जन्नत की चीज़ों पर आग असर नहीं करती और अल्लामा सैय्यद सुलेमान जमल रहीमहुल्लाहु त’आला लिखते हैं कि ये बात साबित है कि जन्नत की किसी चीज़ पर आग असर नहीं करती, इसलिये उस दुम्बे का गोश्त पकाया नहीं गया बल्कि उसे दरिन्दों और परिन्दों ने खा लिया।
 (حاشیۃ الجمل علی الجلالین، ج3، ص549) (انظر: انوار الفتاوی، ج1، ص287، فرید بک سٹال لاہور)
इसी तरह हज़रत अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद यूनुस रज़ा ओवैसी लिखते हैं :- कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिस जन्नती मेंढे को ज़िबह किया उसका गोश्त किसने खाया था? इस बारे में कोई रिवायत नज़र से ना गुज़री अलबत्ता ये देखा कि उसके गोश्त को परिंदों और दरिन्दों ने खाया था। तफसीर -ए- सावी में है कि ज़िबह होने के बाद मेंढे के गोश्त को दरिन्दों और परिंदों ने खा लिया क्योंकि आग जन्नती चीज़ों पर असर नहीं करती। (صاوی، ج3، ص322)
 (انظر: فتاوی بریلی شریف، ص301، زاویہ پبلشرز لاہور)
मज़कूरा इबारतों से मालूम हुआ कि वो दुम्बा जन्नती था :- और इसी वजह से उसका गोश्त पकाया नहीं गया लेकिन बात यहाँ खत्म नहीं होती, अभी हमारे सामने और भी कुछ अक़्वाल हैं जिनसे उलझने मज़ीद बढ़ती हैं, चुनाँचे:
तफसीर की कई किताबें मसलन तफसीर -ए- कबीर, तफ्सीरात -ए- अहमदिया, तफसीर -ए- तबरी, तफसीर इब्ने कसीर, तफसीर -ए- क़ुर्तुबी और तफसीर रूहुल बयान वगैरा में सराहातन इस बात का ज़िक्र है :- कि उस मेंढे की सींग काबा शरीफ में थी यहाँ तक कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रदिअल्लाहु त’आला अन्हु के ज़माने में फितना -ए- हज्जाज बिन यूसुफ के वक़्त काबे में आग लगी और वो सिंग जल गई।
अब ये समझ मे नही आता के जब उस मेंढे का गोश्त इस वजह से नही पकाया गया कि वो जन्नती है और जन्नती चीज़ों पर आग असर नही करती तो फिर उस के सींग में आग कैसे लग गयी और वो कैसे जल गयी? अब या तो वो जन्नती नही और अगर जन्नती है तो सींग का जलना मुमकिन नही। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए अब हम मज़ीद अक़वाल नक़ल कर रहे है, मुलाहिज़ा फरमाए:
फतावा फ़क़ीहे मिल्लत में सवाल हुआ :- के हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने जिस जन्नती मेंढे को ज़िबह किया था उसे जानवरो ने खा लिया और उस की सींग काबा में रख दी गयी जो काबा में आग लगने की वजह से जल गयी तो सवाल ये है कि जब जन्नती चीज़ों को आग नही खा सकती तो फिर वो सींग कैसे जल गई?
जवाब में लिखा है कि जो मेंढा हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम की जगह ज़िबह हुआ उस के बारे मुफ़स्सिरीन का इख़्तेलाफ़ है। 
 बाज़ के नज़दीक ये है कि वो जन्नत से आया था और बाज़ के नज़दीक ये है कि वो अल्लाह की तरफ से शब्बीर पहाड़ से उतारा गया था और अगर ये सही है के यज़ीदी हमले के वक़्त उस की सींगे जल गई थी तो जाहिर यही है के वो शब्बीर पहाड़ ही से आया था। 
 (انظر: فتاوی فقیہ ملت، ج2، ص281، کتاب الخطر والاباحۃ، شبیر برادرز لاہور)
हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद वक़ारूद्दीन अलैहिर्रहमा से सवाल हुआ की ज़िबह होने वाले दुम्बे का गोश्त कहाँ गया? आग उठा कर ले गयी, बाँट दिया गया या दरिंदो ने खा लिया?
आप ने जवाब में इरशाद फरमाया की इस बारे में तफ़ासीर में मुख्तलिफ अक़वाल बयान किये गए है। इस पर तो इत्तेफ़ाक़ है कि उस दुम्बे के सींग खाना -ए- काबा में रखे गए थे और हुज़ूर ए अकरम ﷺ की ज़ाहिरी हयात तक महफूज़ थे। 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रदिअल्लाहु त’आला अन्हु के ज़माने में हज्जाज बिन युसुफ़ ने मक्के पर हमला किया था जिससे खाना -ए- काबा में आग लग गयी थी तो सींगो का क्या हुआ, इस का तज़किरा नहीं मिलता (और) गोश्त के मुताल्लिक़ ज़्यादा मश’हूर क़ौल ये है कि जिसे अल्लामा सावी ने अपनी तफ़्सीर में लिखा है के उस का गोश्त जानवर खा गए थे।
 (انظر: وقار الفتاوی، ج1، ص70، باب متعلقہ انبیاے کرام)
हज़रत अल्लामा मुफ़्ती खलील खान बरकाती से सवाल हुआ :- कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिस दुम्बे को ज़िबह फरमाया था उस की खाल किधर गयी?
 जवाब में लिखते हैं कि फ़क़ीर के इल्म में नही के वो खाल कहाँ गयी?
 (انظر: احسن الفتاوی المعروف بہ فتاوی خلیلیہ، ج1، ص399، ضیاء القرآن پبلی کیشنز لاہور)
मज़कूरा तमाम इबारतों से भी बात मुकम्मल :- तौर पर समझ में नही आती लिहाज़ा अब हम एक आखिरी इबारत को नक़ल करने पर इक्तेफ़ा करते है, इस इबारत के बाद हम कोई तब्सिरा नही करेंगे।
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हज़रत अल्लामा मुहम्मद आसिम रज़ा क़ादरी से इसी बारे में सवाल किया गया तो आप ने तहक़ीक़ी जवाब तहरीर फरमाया जिसकी तस्दीक़ हज़रत अल्लामा मुफ़्ती क़ाज़ी मुहम्मद अब्दुर्रहीम बास्तवी ने फरमाई।
आप जवाब में लिखते है के ये बात तो सहीह है के जन्नती चीज़ों पर आग असर नही करती :- जैसा के अल्लामा सावी ने अपनी तफ़्सीर में लिखा है और मेंढे की सींगो के जलने की सराहत भी कुतुब ए तफ़्सीर में मौजूद है मसलन तफ़्सीर -ए- कबीर, तफसीरात -ए- अहमदिया, तफ़्सीर -ए- तबरी, तफसीर इब्ने कसीर, तफ़्सीर -ए- कुर्तुबी और तफ़्सीर रूहुल बयान वगैरा।
(मज़ीद लिखते है की) उस मेंढे के जन्नती होने में इख़्तेलाफ़ है :- चुनाँचे एक रिवायत में है की हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम की जगह जो जानवर ज़िबह हुआ वो एक पहाड़ी बकरा था जो शब्बीर पहाड़ से उतरा था और यही हज़रत अली रदिअल्लाहु त’आला अन्हु का भी क़ौल है तो इस सूरत में कोई इख़्तेलाफ़ नही लेकिन हज़रते इब्ने अब्बास व अल्लामा सादी और दीगर मुफ़स्सिरीन के कलामो में ये है के वो जन्नती मेंढा था जिसे ब हुक्मे इलाही हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ले कर आये और ये वही मेंढा था जिस की हज़रते आदम अलैहिस्सलाम के बेटे “हाबिल” ने क़ुरबानी की थी। ये मेंढा चालीस साल तक जन्नत में चरता रहा और फिर हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम की जगह क़ुर्बान किया गया मगर इससे इसका फि नफसीही जन्नती होना साबित नही होता बल्कि तफ़्सीर -ए- रूहुल बयान की रिवायत के मुताबिक ये वही मेंढा था जिसे हज़रते आदम अलैहिस्सलाम के बेटे ने बारगाह -ए- इलाही में पेश किया था।
 (تفسیر روح البیان، ج2، ص379)
 इन रिवायात से इसका जन्नती होना साबित नही हुआ तो अब इसकी सींग का जलना दुनियावी चीज़ का जलना हुआ, बहर हाल तफसीरी रिवायात मुख्तलिफ है क़तई फैसला मुश्किल है।
 (انظر: فتاوی بریلی شریف، ص364، 365، 366، زاویہ پبلشرز لاہور)
जन्नती मेंढे के सींग :- हज़रत सुफ़यान बिन उईना रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते है: इस मेंढे (यानि दुम्बा) के सींग अरसए दराज़ तक क़ाबा शरीफ में रखे रहे यहाँ तक के जब क़ाबा शरीफ में आग लगी तो वो सींग भी जल गए |
क़ाबा शरीफ़ में आग कब और कैसे लगी? :- क़ाबा शरीफ में आग लगने और उसमे सींग जल जाने के तअल्लुक़ से ” सवानेह कर्बला में दिए हुए मज़मून की रौशनी में अर्ज़ है: नवासा ए रसूल इमामे अली मक़ाम हज़रते इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत के तक़रीबन दो साल बाद यज़ीद पलीद ने मुस्लिम बिन उक़्बा को बारह हज़ार सिपाहियों की फौज देकर मदीनतुल मुनव्वराह पर हमला करने भेजा जालिम यज़ीदियो ने मदीना शरीफ में बे इंतिहा खून रेज़ी की, सात हज़ार सहाबा किराम अलैहिमुर्ररिद्वान समीत दस हज़ार से ज़्यादा अफ़राद को शहीद किया अहले मदीना के घर लूट लिए इंतिहाई शर्मनाक हरकतें की यहां तक के मस्जिदे नबवी शरीफ के सुतून के साथ घोड़े बांधे फिर ये फौज मक्क़ा पहुंची मिंजनिक (जो के पत्थर फेकने का अला होता है) उस के ज़रिये बरसाए इस से हरम शरीफ का सेहने मुबारक पत्थरो से भर गया मस्जिदुलहराम के सुतून शहीद हो गए और काबातुल्लाह के गिलाफ शरीफ और छत मुबारक को इन ज़ालिमों ने आग लगा दी काबतुल्लाह शरीफ की छत में हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम के फिदिए में कुर्बान होने वाले (जन्नती) दुमबे के जो मुबारक सींग तबर्रुक के तोर पर मेहफ़ूज़ थे वोह भी उस आग में जल गए जिस रोज़ यानि 15 रबीउलअव्वल 64 हिज़री को काबा शरीफ की बेहुरमती हुई थी उसी रोज़ मुल्के शाम के शहर हम्स में 39 साल की उम्र में यज़ीद पलीद मर गया इस बदनसीब ने जिस इक्तिदार के नशे में बदमस्त होकर इमाम अली मक़ाम हज़रते इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्ह और खानदाने रिसालत के महकते फूलो को ज़मीने कर्बला पर ख़ाक व खून में तड़पाया मक्के मदीने वालो पर ज़ुल्म व सितम की आंधियाँ चलायीं उस तख्ते हुकूमत पर उसे सिर्फ तीन वर्ष सात माह शेतनत करने का मौका मिला इस की मोत में किस कदर इबरत है अल मौत,अल मोत, |
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क्या हर कोई ख्वाब देख कर अपना बेटा ज़बह कर सकता है? :- याद रहे कोई शख्स ख्वाब या ग़ैबी आवाज़ की बुन्याद अपने या दूसरे के बच्चे या किसी इंसान को ज़बह नहीं कर सकता करेगा तो सख्त गुनहगार और अज़ाबे नार का हक़दार करार पायेगा हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम जो ख्वाब की बिना पर अपने बेटे की क़ुरबानी के लिए तय्यार हो गए ये हक़ है क्योंकि आप नबी है और नबी का ख्वाब वाहिये इलाही होता है उन हज़रात का इम्तिहान था हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम जन्नती दुम्बा ले आये और अल्लाह तआला के हुक्म से हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने प्यारे बेटे की बजाये उस जन्नती दुम्बे को ज़बह फ़रमाया हज़रते इब्राहीम और हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम इस अनोखी क़ुरबानी की याद ता क़यामत कायम रहेगी और मुसलमान हर बकरा ईद में मख़सूस जांवरो की कुर्बानियां पेश करते रहेंगे |
इस्माईल के माने क्या हैं :- हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम बड़ी उम्र तक बे औलाद थे 99 साल की उम्र में आप अलैहिस्सलाम को हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम अता किये गए हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम बेटे की दुआएं मांग कर कहते थे ”इस्मा या ईल के माईने है” सुन और ईल” इब्रानी ज़बान में खुदा अज़्ज़ा वजल का नाम, इस तरह इस्मा या ईल के माईने हुए “ए खुदा अज़्ज़ा वजल मेरी सुन ले” जब आप अलैहिस्सलाम पैदा हुए तो इस दुआ की यादगार में आपका नाम इस्माईल रखा गया |
अबुल अम्बिया के दस हुरूफ़ की निस्बत से हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दस मख़सूस फ़ज़ाइल :-
- रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम सब से अफ़ज़ल हैं,
- हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ही अपने बाद आने वाले सरे अम्बियाए किरामअलैहिस्सलाम के वालिद हैं,
- हर आसमानी दीन में आप ही की पैरवी और इताअत है,
- हर दीन वाले आपकी ताज़ीम करते हैं,
- आप ही की याद क़ुरबानी है,
- आप ही की यादगार हज के अरकान है,
- आप ही काबा शरीफ की पहली तामीर करने वाले यानी इसे घर की शक्ल में बनाने वाले हैं
- जिस पत्थर (मकामें इब्राहीम) पर खड़े होकर आपने क़ाबा शरीफ बनवाया वहां कियाम और सिजदे होने लगे,
- कयामत में सबसे पहले आप ही को उमदाह लिबास अता होगा इस के फौरन बाद हमारे हुज़ूर ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को,
- मुसलमानों के फौत हो जाने वाले बच्चो की आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम और आप की बीवी साहिबा हज़रते सारह रदि यल्लाहु तआला अन्हा आलमे बरज़ख़ में परवरिश करते हैं |
शेर कदम चाटने लगे :- हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर दो भूके शेर छोड़े गए (अल्लाह पाक की शान देखिये) के वो भूके होने के बावजूद आप अलैहिस्सलाम को चाटने और सजदे करने लगे।
रेत की बोरियो से सुर्ख गंदुम निकले :- हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ग़ल्ला (यानि अनाज) नहीं मिला, आप अलैहिस्सलाम सुर्ख रेत के पास से गुज़रे तो आप अलैहिस्सलाम ने उससे बोरियां भर ली जब घर तशरीफ लाए तो घर वालो ने पूछा ये क्या है? फरमाया ये सुर्ख गंदुम है जब उन्हें खोला गया तो वो वाकई सुर्ख गंदुम थे जब ये गंदुम बोये गए तो उनमें जड़ से ऊपर तक गेहूं (यानी कनक) की बालियां लगीं |
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हज़रते इब्राहीम अैहिस्सलाम से कई कामों की शुरुआत हुई इन में से 8 ये हैं: 
 1 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ही के बाल सफेद हुऐ, 
 2 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ही ने (सफेद बालों) में मेहंदी और कतम यानी नील के पत्तो का खिजाब लगाया, 
 3 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ही ने सिला हुआ पाजामा पहना,
 4 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ही ने मिमबर पर खुतबा पढ़ा, 
 5 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ने राहे खुदा में जिहाद किया, 
 6 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ने मेहमान नवाजी मेहमानी की रस्म शुरू की, 
 7 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ही मुलाक़ात के वक्त लोगो से गले मिले, 
 8 सबसे पहले आप अलैहिस्सलाम ही ने सरेद तौयार किया।
(मुसन्निफ़ अबी शैबा) (मिरकात) (तफ़्सीर नईमी जिल्द अव्वल) (सहानेह कर्बला) (मुसनदे इमाम अहमद बिन हंबल) (तफ़्सीरे जुमल) (बिनया शरह हिदाया) (तफ़्सीरे खाज़िन जिल्द चार) (तफ़्सीरे तबरी) क़ुरआन शरीफ पारा 23) (अल मुसतदरक जिल्द तीन) (तफ़्सीरे कबीर जिल्द 9)
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अस्सलाम अलैकुम
हज़रत एक सवाल है के किसी ने मुझ से पुछा था के कुरबानी तीन (3)दिन क्यूँ होती है मैने अपने इल्म के एतबार से उसे जवाब दिया था पर तफसीली जवाब नही दे पाया इस लिए आप तसल्ली बख्श जवाब इनायत फरमाए ऐन नवाजिश होगी
क़ुरबानी सिर्फ 3 दिन तक हो सकती है हज़रते अब्दुल्लाह इबने मसूद रदिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि क़ुरबानी सिर्फ 3 दिन है – हवाला : उम्दतुल कारी